हैदराबाद. भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने छात्रों द्वारा कथित तौर पर आत्महत्या किए जाने की घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए शनिवार को कहा कि आखिर संस्थानों से कहां गलती हुई है कि विद्यार्थी खुद की जान लेने के लिए मजबूर हो गये हैं. मुंबई स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-बॉम्बे) में पिछले दिनों एक छात्र की कथित आत्महत्या (IIT Bombay Student Suicide) के संदर्भ में उन्होंने कहा कि मृतकों के शोक संतप्त परिजनों के प्रति वह संवेदना व्यक्त करते हैं.
सीजेआई ने कहा कि वह इस बात से चकित हैं कि संस्थानों ने कहां गलती की है जिसके चलते छात्र अपनी जान लेने को मजबूर हैं. हाल ही में आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र की कथित आत्महत्या की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग के लोगों द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाएं आम होती जा रही हैं.
परिवार के प्रति प्रकट की संवेदना
प्रधान न्यायाधीश ने यहां ‘द नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च’ (एनएएलएसएआर) में आयोजित दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सामाजिक परिवर्तन के लिए अदालतों के अंदर और बाहर समाज से संवाद स्थापित करने में न्यायाधीशों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. उन्होंने कहा, “हाल ही में मैंने आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र की आत्महत्या के बारे में पढ़ा. इसने मुझे पिछले साल ओडिशा में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में एक जनजातीय छात्र की आत्महत्या की घटना याद दिला दी.”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “मैं इन छात्रों के परिवार के सदस्यों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं. लेकिन मैं यह भी सोच रहा हूं कि हमारे संस्थानों ने कहां गलती की है, जिसके चलते छात्रों को अपना बहुमूल्य जीवन खत्म करने को मजबूर होना पड़ रहा है.”
गुजरात के रहने वाले प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी ने कथित तौर पर 12 फरवरी को आईआईटी बॉम्बे में आत्महत्या कर ली थी.
सिर्फ आंकड़े नहीं हैं आत्महत्या की घटनाएं
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “ये कुछ उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि पिछड़े समुदायों में आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं. ये संख्याएं सिर्फ आंकड़े नहीं हैं. ये कभी-कभी सदियों के संघर्ष की कहानियां बयां करती हैं. मेरा मानना है कि अगर हम इस समस्या का समाधान करना चाहते हैं तो पहला कदम समस्या को स्वीकार करना और पहचानना है.” उन्होंने कहा कि वह वकीलों के मानसिक स्वास्थ्य पर जोर देते रहे हैं और उतना ही महत्वपूर्ण छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य भी है.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न केवल शिक्षा पाठ्यक्रम के जरिए छात्रों में करुणा की भावना पैदा करनी चाहिए, बल्कि अकादमिक विद्वानों को भी उनकी चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मुझे लगता है कि भेदभाव का मुद्दा सीधे तौर पर शिक्षण संस्थानों में सहानुभूति की कमी से जुड़ा हुआ है.’
उन्होंने कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश का काम न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों के अलावा उन संरचनात्मक मुद्दों पर भी प्रकाश डालना है जो समाज के सामने हैं. उन्होंने कहा, ‘इसलिए, सहानुभूति को बढ़ावा देना पहला कदम होना चाहिए. शिक्षा संस्थानों को यह कदम उठाना चाहिए.’