ज्योतिष। हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दिनों को बेहद ही खास माना जाता है वही अभी पितृपक्ष चल रहा है। पितृपक्ष साल का वो समय होता है जब लोग अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए उनका श्राद्ध और तर्पण करते हैं। कहा जाता है कि पितृपक्ष के दिनों में पूर्वज धरती पर अपने वंशजों से मिलने आते हैं और इस दौरान किया जाने वाला श्राद्ध कर्म, पिंडदान और तर्पण पाकर वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख समृद्धि व वंशवृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। कल यानी 23 सितंबर दिन शुक्रवार को पितृपक्ष की त्रयोदशी श्राद्ध है। पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष पड़ता है। यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक रहता है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की या फिर कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को होती है उसका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को ही किया जाता है। वहीं अगर मृत्यु तिथि याद नहीं है तो ऐसे में पूर्वजों का श्राद्ध कर्म अश्विन मास की अमावस्या को किया जा सकता है तो आज हम आपको पितृपख की त्रयोदशी श्राद्ध की विधि और सामग्री लिस्ट के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
पितृपक्ष की त्रयोदशी श्राद्ध के दिन किसी भी सुयोग्य ब्राहमण के जरिए ही श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण करवाना चाहिए श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों के साथ साथ गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देना पुण्यदायी माना जाता है इस दिन गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश निकाला जाता है ऐसा करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है इस दिन गंगा नदी के किनारे श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान करवाना अच्छा माना जाता है।
अगर संभव नहीं हो पा रहा है तो आप इसे घर में भी कर सकते हैं। आपको बता दें कि श्राद्ध की पूजा हमेशा ही दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए किसी ब्राहमण की सहायता से मंत्रोच्चारण कर और पूजा के बाद जल से तर्पण करना होता है फिर भोग लगाया जाता है मान्यता है कि नियम अनुसार श्राद्ध कर्म और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं और जीवन के कष्टों को दूर करते हैं इस दिन श्राद्ध तर्पण करने से पितृदोष भी दूर हो जाता है।
नोट : यह सभी जानकारी ज्योतिष के जानकार देते है।