जोधपुर. राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) ने कहा है कि लोगों को अपना जेंडर चुनने के लिए आत्म निर्णय का अधिकार है. लोगों को अपना व्यक्तित्व, लिंग या जेंडर को खुद पहचान करने का मौलिक अधिकार है. जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाया. उन्होंने 25 मई के एक आदेश में इसका अवलोकन करते हुए अफसरों को याचिकाकर्ता के सेवा रिकॉर्ड को संशोधित करने पर विचार करने का निर्देश दिया, एक व्यक्ति ने जन्म के समय महिला का लिंग निर्धारित किया था.
हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया है, ‘लिंग पहचान जीवन का सबसे बुनियादी पहलू है जो किसी व्यक्ति के पुरुष या महिला होने के आंतरिक मूल्य को संदर्भित करता है. हर कोई यौन अभिविन्यास या लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव के बिना सभी मानव अधिकारों का आनंद लेने का हकदार है जो जीवित रहने के लिए एक बुनियादी आवश्यकता है.’
महिला के रूप में जन्म लिया याचिकाकर्ता अब बन गया है पुरुष
इस मामले में याचिकाकर्ता जो जन्म के समय महिला थी; उसने सर्जरी के जरिये अपना लिंग बदल लिया और पुरुष बन गई. इसके बाद उसने एक महिला से शादी की और उनके दो बच्चे भी हुए. इस प्रकार वह दो बच्चों का पिता है. याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए कहा कि जब तक सेवा रिकॉर्ड में उसका नाम और लिंग नहीं बदला जाएगा, तब तक उसे और उसके परिवार को लाभ प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण होगा. जबकि राज्य सरकार के अफसरों का कहना था कि याचिकाकर्ता महिला थी और उसकी पहचान उसी रूप में दर्ज है. अब यदि उसे पुरुष के रूप में अपनी पहचान चाहिए तो उसके लिए उसके पक्ष में कोर्ट का डिक्लेरेशन जरूरी है.
4 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
हालाँकि, 2019 के ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम की ओर इशारा करते हुए, अदालत ने नोट किया कि जिन व्यक्तियों ने 2019 से पहले जीआरएस लिया है, उन्हें अपने लिंग परिवर्तन का संकेत देने वाले प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने की अनुमति है. राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि पहले से ही सर्जरी करा चुके लोगों को इस अधिकार से वंचित करना अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत है और भेदभाव को बढ़ावा देता है. इसे देखते हुए, अदालत ने अधिकारियों को एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया और मामले को 4 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया.