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बतौर मुख्य अतिथि भारत आ रहे हैं मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी

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बतौर मुख्य अतिथि भारत आ रहे हैं मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी

by News Desk
January 24, 2023
in Politics, World
बतौर मुख्य अतिथि भारत आ रहे हैं मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी
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नई दिल्ली: मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी इस गणतंत्र दिवस बतौर मुख्य अतिथि भारत आ रहे हैं. ये पहली बार है जब मिस्र के राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस पर चीफ गेस्ट बनकर आ रहे हैं. जिस समय में मिस्र के राष्ट्रपति को भारत ने चीफ गेस्ट बनाकर बुलाया है, वह भी खास है. मिस्र इस समय आर्थिक संकट से गुजर रहा है और कई अरब देश भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं. हाल ही में भारत ने जब गेहूं पर निर्यात पर पाबंदी लगाई थी, तब भी मिस्र को गेहूं को कई टनों की खेप भेजी थी.

सीसी को मिस्र में एक प्रभावशाली नेता माना जाता है जिन्होंने देश में राजनीतिक स्थिरता पैदा की है. कहा जाता है कि मिस्र की सत्ता पर सीसी की पकड़ लोहे जैसी मजबूत है. राष्ट्रपति बनने से पहले सीसी मिस्र के सेना प्रमुख थे जिन्होंने जुलाई 2013 में राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को सत्ता से हटा दिया था. इसके एक साल बाद वो खुद मिस्र के राष्ट्रपति बन गए.

सीसी का जन्म 1954 में काहिरा के गमलेया इलाके में हुआ था. सीसी का परिवार इस्लाम को मानने वाला एक धार्मिक परिवार था. उनके पिता फर्नीचर का काम करते थे और परिवार चलाने लायक कमा लेते थे. सीसी पढ़ने में बेहद अच्छे थे और बचपन से ही उनका झुकाव सेना की तरफ था.

1977 में सीसी ने मिस्र की सैन्य अकादमी से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद पैदल सेना में भर्ती हो गए. इसी दौरान उन्होंने एक मशीनीकृत डिवीजन की कमान भी संभाली. सीसी बेहद तेज दिमाग के युवा थे और देखते ही देखते वो सेना के बड़े पदों पर पहुंचने लगे. वह सऊदी अरब में राजनयिक सैन्य चीफ-ऑफ-स्टाफ नियुक्त किए गए और फिर मिस्र के उत्तरी मिलिट्री जोन के कमांडर के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएं दीं.

उनके बेहतर काम को देखते हुए जल्द ही उन्हें मिस्र की मिलिट्री इंटेलिजेंस का प्रमुख बना दिया गया. सेना में आगे बढ़ने के दौरान भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. ब्रिटेन के स्टाफ कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की और साल 2005 में पेन्सिलवेनिया के आर्मी कॉलेज से उन्होंने मास्टर्स की डिग्री हासिल की.

सीसी का राजनीतिक उभार

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीसी मिस्र के राजनीतिक पटल पर साल 2011 से उभरने शुरू हुए जब उन्हें सेना में जनरल रहते हुए सशस्त्र बलों की सर्वोच्च परिषद (SCAF) का सदस्य नामित किया गया. उसी साल अरब स्प्रिंग का आंदोलन मिस्र में भी शुरू हुआ और लोग तत्कालीन राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ सड़कों पर उतर आए. मुबारक को इस्तीफा देना पड़ा और SCAF ने शासन करना शुरू कर दिया. सत्तारूढ़ सैन्य परिषद से पहले से ज्यादा अधिकार अपने हाथ में ले लिए. मिस्र में उस दौरान मुस्लिम ब्रदरहुड का प्रभाव काफी बढ़ गया था. ब्रदरहुड की राजनीतिक पकड़ भी काफी अच्छी थी.

जनरल सीसी एक कट्टर मुसलमान माने जाते थे और इसी कारण सेना ने उन्हें मुस्लिम ब्रदरहुड से संपर्क रखने का जरिया बनाया. मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र में इस्लामिक आंदोलन को बढ़ावा देने वाला संगठन था जिसे अब प्रतिबंधित कर दिया गया है. जून 2012 में मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख शख्सियत मुहम्मद मोर्सी मिस्र के राष्ट्रपति बने.

मोर्सी और सीसी के संबंध

अब्देल फतेह अल-सीसी कॉलेज के दिनों से ही इस्लाम के प्रति ज्यादा लगाव रखते थे. उसी दौरान उन्होंने ‘मध्य-पूर्व में लोकतंत्र’ नामक एक शोध पत्र लिखा था. उन्होंने अपने शोध पत्र में तर्क दिया था कि मिस्र के लोकतंत्र में धार्मिकता दिखनी चाहिए. उन्होंने कहा था कि लोकतांत्रिक सरकारें धर्मनिरपेक्षता का पालन करती हैं जिससे आबादी का एक बड़ा तबका ठगा हुआ महसूस करता है.

मुस्लिम ब्रदरहुड, जो खुद मिस्र में इस्लामिक शासन की वकालत करता था, सीसी के विचारों से प्रभावित था. सीसी के शुरुआती विचारों के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति मोर्सी उनके बेहद करीब रहे. उन्होंने सीसी को तुरंत ही सेना का प्रमुख और रक्षा मंत्री बना दिया. इस पक्षपात से लोग उन्हें ‘मोर्सी का आदमी’ कहने लगे थे.

मिस्र की सेना हमेशा से मुस्लिम ब्रदरहुड को शक की नजर से देखती आई थी और सीसी की पूरी जिंदगी ही सेना में बीती थी. वो भले ही कट्टर मुसलमान थे लेकिन उनके मन में कहीं न कहीं मुस्लिम ब्रदरहुड को लेकर एक चिढ़ थी. अगले ही साल मुस्लिम ब्रदरहुड की सरकार के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया.

लोग क्रूर शरिया शासन और आर्थिक तंगी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए और मोर्सी के इस्तीफे की मांग करने लगे. जून 2013 के अंत में प्रदर्शन काफी तेज हो गए जिसे देखते हुए जनरल सीसी ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने लोगों की इच्छा को नहीं माना तो सेना हस्तक्षेप करेगी.

3 जुलाई 2013 को, जनरल सिसी ने अपने एक टेलीविजन भाषण में घोषणा की कि राष्ट्रपति मोर्सी को पद से हटा दिया गया है और संविधान को निलंबित कर दिया गया है. मिस्र में एक अंतरिम सरकार की स्थापना की गई.

मिस्र के लोगों के बीच मोर्सी के शासन के समय सीसी की काफी लोकप्रियता थी (Photo- Reuters)
इस खबर से मिस्र के लोग काफी खुश हुए और लोगों ने कहना शुरू किया कि मिस्र के लोग और उसकी सेना एक साथ हैं. मोर्सी ने इस घटना को सैन्य तख्तापलट करार दिया. इसके बाद सेना में मुस्लिम ब्रदरहुड को प्रतिबंधित कर दिया और उसके कई नेताओं को जेल में डाल दिया गया.

राष्ट्रपति चुनाव में उतरे सीसी

जनवरी 2014 में सीसी को फील्ड मार्शल बना दिया गया. यह पद मिस्र की सेना का सर्वोच्च पद है. इसके दो महीने बाद ही सीसी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और चुनाव लड़ने की तैयारी मे लग गए. सीसी 97% मतों के साथ मई 2014 में मिस्र के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. उनके राष्ट्रपति बनने के पीछे सेना की बड़ी भूमिका रही.

सीसी के शासन में मिस्र की स्थिति

सीसी मिस्र के लोगों को शिक्षा, रोजगार, घर आदि का सुनहरा सपना दिखाकर सत्ता में आए थे लेकिन कुछ समय बाद ही लोगों का सपना चूर-चूर हो गया. सत्ता में आने के बाद से सीसी सेना पर अधिक ध्यान देने लगे. उन्होंने मिस्र की सेना को मजबूत किया और उस पर अपार धन खर्च किया. मिस्र के अमीर और अमीर होते गए जबकि मध्यम वर्ग गरीब होता गया.

सीसी ने राजधानी काहिरा के पास ही अरबों डॉलर खर्च कर एक नई वित्तीय राजधानी बनाई. उन्होंने 23 अरब डॉलर खर्च कर दुनिया की सबसे लंबी चालक रहित मोनोरेल की शुरुआत की. सीसी ने कई राष्ट्रीय मेगा परियोजनाओं पर अरबों खर्च किया. इससे आम जनता को किसी प्रकार का लाभ नहीं हुआ.

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सीसी की वित्तीय नाकामियों से देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा धक्का लगा और उन्हें साल 2016 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जाना पड़ा. IMF ने कड़ी शर्तों पर मिस्र को लोन दिया. मिस्र 2016 के बाद से तीन बार IMF के पास लोन के लिए जा चुका है. IMF कड़ी शर्तों पर मिस्र को कर्ज दे रहा है. IMF की शर्त के कारण ही मिस्र की मुद्रा पाउंड में भारी गिरावट आई है जिससे महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है.

देश से विदेशी निवेश भी बेहद कम हो गया है क्योंकि सीसी ने अपनी गलत आर्थिक नीतियों के कारण निजी क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचाया है. मिस्र की अर्थव्यवस्था पर सेना और सरकारी कंपनियां हावी हैं और निजी क्षेत्र का दबदबा काफी कम है. मिस्र पर फिलहाल 155 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज है जिसकी किस्त चुकाने में इसकी राष्ट्रीय आय का एक तिहाई हिस्सा खत्म हो जाता है.

कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध ने मिस्र के पर्यटन पर बुरा असर डाला है. मिस्र दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक है जो रूस और यूक्रेन से अपना गेहूं खरीदता था लेकिन दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ जाने से मिस्र को बहुत बड़ा झटका लगा है. मिस्र में गेहूं समेत सभी खाद्यान्नों की किल्लत बढ़ गई है.

बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से मिस्र के लोगों में सीसी के प्रति काफी गुस्सा है. लोग अपनी जरूरत का सामान नहीं खरीद पा रहे. खाने-पीने की चीजों को खरीदने में भी लोगों को कटौती करनी पड़ रही है. लेकिन लोग सीसी की सरकार के खिलाफ भारी संख्या में प्रदर्शन नहीं कर सकते. साल 2013 में ही एक कानून बनाकर अनाधिकृत प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई थी.

हालांकि, साल 2016 में जब सीसी ने लाल सागर के दो द्वीपों की संप्रभुता सऊदी अरब को दी थी तब लोग कानून का भय छोड़ सड़कों पर आ गए थे. सीसी की सरकार ने प्रदर्शनों को बड़ी सख्ती से दबा दिया. सीसी पर मानवाधिकारों के उल्लंघन और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं जिससे वो इनकार करते हैं. सीसी ने देश से विपक्ष को भी समाप्त कर दिया है और कई विपक्षी नेताओं को जेलों में डाल दिया है.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कथित तौर पर सीसी को तानाशाह कहा था. द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप सीसी से मुलाकात का इंतजार कर रहे थे तब उन्होंने कहा था, ‘कहां है मेरा मेरा फेवरेट तानाशाह.’ हालांकि, व्हाइट हाउस ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में शामिल इस कमेंट को खारिज कर दिया था. सीसी मिस्र की सत्ता पर साल 2030 तक बने रह सकते हैं जिसके लिए उन्होंने संविधान में बदलाव किए हैं. साल 2024 में मिस्र में चुनाव होने वाले हैं जिसमें पूरी संभावना है कि सीसी फिर से राष्ट्रपति चुने जाएंगे.

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