पृथ्वी पर पानी कहां से आया इस पर कई तरह के शोध प्रस्तुत किए जा चुके हैं. इनमें कइयों का दावा है कि पृथ्वी पर पानी उल्कापिंडों और क्षुद्रग्रहों के जरिए आया था. कुछ शोध यह भी दावा करते हैं कि पृथ्वी पर इतना सारा पानी पहले से ही मौजूद था. पर कोई भी सिद्धांत पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सका है. वहीं मंगल के बारे में भी कहा जाता है कि एक समय वहां भी बहुत सारा बहता हुआ पानी (Water on Mars) हुआ करता था और इसके मूल स्रोत के बारे में भी अलग एक अलग मत सामने आया है. नए अध्ययन के मुताबिक वहां भी पानी उल्कापिंडों या क्षुद्रग्रहों के टकराव से आया.
बाहरी सौरमंडल से आए उल्कापिंड
यूनिर्सिटी ऑफ बर्न, यूनिवर्सिटी डि पेरिस और ईटीएस ज्यूरिख, के सहयोगियों के साथ कोपनहेगन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर स्टार एंड प्लैनेट फॉर्मेशन के शोधकर्ताओं की टीम ने ऐसे प्रमाण हासिल किए हैं. इनसे पता चलता है कि पुरातन मंगल के महासागरों का अधिकांश पानी कार्बन सम्पन्न कॉन्ड्राइट के जरिए आया था. ये उल्कापिंड सौरमंडल के बाहरी हिस्से से आए थे.
पहले यह भी था अनुमान
इस अध्ययन के पहले के एक शोध ने सुझाया था कि एक समय मंगल या तो अधिकांश या फिर पूरी तरह से महासागरों के पानी से ढका था और वह पानी सतह के नीचे के हिस्सों के ठंडे होने पर निकली गैसों के निकलने के साथ आया था. अब साइंस एडवांस में प्रकाशित नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया है कि इस बात की ज्यादा संभावना है कि पानी दूसरे स्रोत से आया होगा.
कैसे पता लगा इसका
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह स्रोत बाहरी सौरमंडल से आए कार्बन समृद्ध कॉन्ड्रॉइट उल्कापिंडों से आया होगा. इस नतीजे पर वे उन टुकड़ों के अध्ययन से पहुंचे थे जो मंगल ग्रह पर उल्कापिंडों के टकराने के बाद अंतरिक्ष तक पहुंचे और फिर पृथ्वी पर पहुंचे थे. शोधकर्ताओं ने ऐसे 31 टुकड़ों का अध्ययन किया जिसमें खास तौर पर क्रोमियम आइसोटोप के टुकड़ों पर ध्यान किया.
अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त
क्रोमियम 54 मंगल ग्रह पर प्राकृतिक तौर पर नहीं पाया जाता है. क्रोड़ के नमूनों में उसकी उपस्थिति संकेत देती है कि वह सतह किसी और पिंड से टकराई थी. शोधकर्ताओं ने इस टुकड़ों में पर्याप्ता पदार्थ पाए जिससे वे अनुमान लगा सकें कि मंगल पर कितने उल्कापिंड टकराए होंगे और उनसे कितना पानी ग्रह पर आया होगा.
कितना पानी होगा वहां
पिछले शोध में बताया कि ऐसे उल्कापिंड में 10 प्रतिशत पानी है. इससे उन्हें यह गणना करने में सहूलियत हुई थी कि ग्रह पर कुल कितना पानी रहा होगा. यह पानी पूरे ग्रह की सतह को घेरने के लिए काफी था और फिर भी 300 मीटर की गहराई मिल जाती. इससे पता चलता है कि मंगल के महासागरों के लिए पानी का प्रमुख स्रोत पानी समृद्ध उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह रहे होंगे.