जोशीमठ. विशेषज्ञों की कई चेतावनियों के बावजूद आपदा प्रभावित जोशीमठ इलाके की सैकड़ों इमारतों से घरों में बरसों से बेतरतीब ढंग से पानी का निकास होता रहा था. हिमालय की गोद में बसे इस शहर की खराब जल निकासी प्रणाली अब एक संकट के बिंदु के रूप में उभरी है. यह शहर के चारों ओर लापरवाही से हुए निर्माण के साथ आपदा को लाने का जरिया लगता है. अब इस बारे में भी स्टडी हो रही है कि कहीं संकट को बढ़ाने का एक अन्य कारण 520 मेगावाट बिजली परियोजना के लिए तपोवन से विष्णुगढ़ तक जोशीमठ के करीब बनी एनटीपीसी की 12 किलोमीटर लंबी सुरंग भी तो नहीं है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने तत्काल निर्देश दिया है कि जोशमठ के लिए एक जल निकासी योजना तैयार की जाए, जिस पर वह बिना किसी औपचारिकता के हस्ताक्षर करेंगे. उधर एनटीपीसी इस बात से इंकार कर रहा है कि इस संकट के लिए भूमिगत सुरंग जिम्मेदार है. उसका कहना है कि उनकी सुरंग में पानी का रिसाव नहीं और वह सूखी है. साथ ही ये जोशीमठ शहर से लगभग एक किलोमीटर दूर है. हालांकि इतिहास बताता है कि ये सुरंग कमजोर है. तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना में पिछले साल फरवरी में चमोली में आई बाढ़ के दौरान इस सुरंग में 54 मजदूरों की मौत हो गई थी. सात संस्थानों के विशेषज्ञों वाली एक केंद्रीय टीम अब पानी के रिसाव के प्राथमिक स्रोत का पता लगाने के काम में लगी है.
बिना ड्रेनेज सिस्टम वाला शहर
जोशीमठ शहर में लगभग 600 घर अब गिरने वाले हैं. इसे देखते हुए राज्य सरकार एक मजबूत जल निकासी योजना तैयार करने के लिए जाग गई है. माना जाता है कि पहाड़ी की तलहटी में स्थित जोशीमठ के घरों का पानी प्राकृतिक रूप से उन नौ नालों में नीचे की ओर बहता है, जो गांवों और कस्बों से होते हुए धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों में मिलती हैं. जैसे-जैसे पर्यटन फलता-फूलता गया और बड़े पैमाने पर निर्माण होता गया. पानी के प्राकृतिक प्रवाह को घरों और अन्य संरचनाओं ने रोक दिया. 2 जनवरी की रात जोशीमठ की एक बस्ती में जमीन से पानी फूट पड़ा, जिसने खतरे की घंटी बजा दी.
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की डॉ. स्वप्नमिता चौधरी ने 2006 में अपनी रिपोर्ट में खराब ड्रेनेज सिस्टम और सीवेज सिस्टम से जुड़े ऐसे जोखिमों को बताया था. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने भी ‘ड्रेनेज सिस्टम की भारी आलोचना की. खासकर मानसून के दौरान जब नौ नालों में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि इलाके में तेजी से पर्यटक लॉज और घर बनाए जा रहे हैं. कस्बे में छोटी-छोटी नालियां हैं, लेकिन इन नालों का पानी कहां जाता है, यह देखने की कोई व्यवस्था नहीं है. भूवैज्ञानिकों ने यह भी देखा था कि ऊपर की ओर धाराओं से बहुत अधिक रिसाव हो रहा था जो जोशीमठ की मिट्टी को ढीला कर रहा था. नए सेटेलाइट डेटा से पता चलता है कि कुछ नालों ने अपने चैनलों को बढ़ाया है, या उन्होंने अपना रास्ता बदल दिया है.
सुरंग और सड़कें
बहुत सी सड़कों के निर्माण ने भी प्राकृतिक ढांचे को अस्त-व्यस्त कर दिया है. राजमार्गों और सड़कों के निर्माण के लिए अत्यधिक ब्लास्टिंग ने ढलानों को कमजोर और अस्थिर बना दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि डायनामाइट विस्फोट और भारी यातायात से होने वाले कंपन से भी नुकसान होता है. स्थानीय लोग एनटीपीसी की सुरंग को भी दोष दे रहे हैं. जिसके खिलाफ जोशीमठ में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं. जोशीमठ शहर के पास ही तपोवन की ओर से आठ किलोमीटर लंबी सुरंग बोरिंग मशीनों से खोदी जा चुकी है. बिजली परियोजना पर पिछले एक दशक से अधिक समय से काम चल रहा है. जोशीमठ में संकट के लिए सुरंग जिम्मेदार होने की बात से एनटीपीसी पूरी तरह से इनकार कर रहा है लेकिन स्थानीय लोग इससे सहमत नहीं हैं. अब एक केंद्रीय टीम वास्तविक कारणों का पता लगाएगी. केंद्र को इस परियोजना के साथ-साथ जोशीमठ में चल रही अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर भी फैसला लेना पड़ सकता है, क्योंकि यह सैनिकों की आवाजाही के लिए भी एक महत्वपूर्ण इलाका है.