भारत और अमेरिका ने अपने रक्षा और तकनीक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए ‘द इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज, iCET’ की पहल की है. इस रक्षा पहल में अमेरिका और भारत उन्नत रक्षा और कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकी को साझा करने की योजना बना रहे हैं. इसमें जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी जेट इंजनों का उत्पादन भी शामिल हो सकता है.
माना जा रहा है कि अमेरिका भारत के साथ यह पहल चीन और रूस, दोनों को एक साथ साधने के लिए कर रहा है. इसे लेकर चीन के एक प्रमुख अखबार ने कहा है कि भारत और अमेरिका उस कपल की तरह हैं जो सोते तो एक ही बिस्तर पर हैं लेकिन उनके इरादे बिल्कुल अलग हैं. चीनी कम्यूनिस्ट सरकार के मुखपत्र माने जाने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक लेख में लिखा कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से मुलाकात में iCET पहल के साथ आधिकारिक तौर पर दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाया है.
चीन के ‘जासूसी गुब्बारे’ को अमेरिका ने मार गिराया
अखबार लिखता है, ‘एक चीनी कहावत है- एक ही बिस्तर, अलग-अलग सपने. कहावत एक ऐसे कपल की बात करता है जो एक-दूसरे से जुड़े हैं लेकिन जिनके इरादे एकदम अलग-अलग हैं. यह कहावत अमेरिका और भारत के बीच संबंधों का सटीक वर्णन प्रतीत होता है. मई 2020 में टोक्यो में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिले थे और दोनों ने इस पहल को शुरू करने की बात कही थी. दोनों पक्ष जानते हैं कि इसकी जरूरत दोनों को है.’
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि भारत अमेरिका के साथ इस उम्मीद में तकनीकी संबंध बढ़ा रहा है ताकि उसे उन्नत तकनीक हासिल हो और अमेरिका से इसके लिए फंडिंग मिले. भारत चाहता है कि इसके जरिए वो क्षेत्र में विकास करे, ग्लोबल इंडस्ट्री और सप्लाई चेन में चीन को पीछे छोड़ सके.
इस रक्षा पहल में अमेरिका के हित का जिक्र करते हुए शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में चीन-दक्षिण एशिया सहयोग रिसर्च सेंटर के महासचिव लियू जोंग्यी के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘जहां तक अमेरिका का सवाल है, अगर वो भारत को अपने साथ जोड़ना चाहता है तो उसे वही करना होगा जो भारत चाहता है. दूसरी तरफ इस पहल के जरिए अमेरिका भारत को अपने पक्के दोस्त की तरह पेश करने की कोशिश कर रहा है जिससे भारत सप्लाई चेन में चीन का विकल्प बनकर उभर सके.
दोनों देश रूसी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम करने को इच्छुक
अखबार लिखता है कि अमेरिका-भारत के बीच यह रक्षा पहल दिखाता है कि दोनों ही भारत को हथियारों के लिए रूस पर अपनी निर्भरता से छुटकारा पाते हुए देखना चाहते हैं.
चीनी अखबार ने लिखा, ‘भारतीय वायु सेना के लगभग 70 प्रतिशत उपकरण रूसी मूल के हैं. भारत अपने हथियारों और उपकरणों में विविधता लाने और इस क्षेत्र में अपने उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के प्रयास कर रहा है. वहीं, अमेरिका यूक्रेन-रूस युद्ध में भारत का निष्पक्ष रूप देश चुका है. वह भारत को किसी भी तरह रूस से दूर कर अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है और हथियारों के लिए भारत की रूस पर निर्भरता को हर हाल में कम करने की फिराक में है.’
वहीं, अखबार ने यह भी लिखा कि फिलहाल यह बता पाना मुश्किल है कि अमेरिका हाई-टेक और रक्षा जैसे क्षेत्रों में भारत के साथ कितना तकनीक साझा करने को तैयार है. अमेरिका को इस बात की भी चिंता है कि चीन के बाद भारत तेजी से विकास कर रहा है और अगर यह विकसित हो जाएगा तो अमेरिका के लिए क्षेत्र में एक और खतरा बनकर उभरेगा. इसके अलावा, भारतीय रणनीतिक सर्कल में कई लोग अभी भी मानते हैं कि अमेरिका भरोसे के लायक नहीं है.
‘चीन-रूस के खिलाफ पूरी तरह अमेरिकी पाले में नहीं जाएगा भारत’
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘भारत भले ही अमेरिका के साथ अपने करीबी संबंधों को बढ़ा रहा है लेकिन वह पूरी तरह से अमेरिका के साथ चीन के खिलाफ नहीं खड़ा होगा. चीन एक ऐसा पड़ोसी है जिससे भारत दूर नहीं जा सकता. अगस्त में, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने “एशियाई शताब्दी” शब्द को रेखांकित किया था और भारत-चीन को एक साथ आने की आवश्यकता पर जोर दिया था.’
अखबार आगे लिखता है, ‘जापान जैसे अमेरिका के छोटे भाइयों से उलट, भारत एक ऐसा देश है जो गुटनिरपेक्षता और रणनीतिक स्वायत्तता का पालन करता है. यह एक भ्रम है कि भारत पूरी तरह से चीन और रूस के खिलाफ अमेरिका के दिखाए रास्ते पर जाएगा. इसका मतलब यह हुआ कि चीन और रूस को साधने के लिए अमेरिका कितना भी भारत का इस्तेमाल कर ले, अपनी कोशिश में वो कभी कामयाब नहीं होगा.’
अंत में अखबार ने लिखा कि iCET पहल से संकेत मिलता है कि अमेरिका चीन और रूस के साथ अपनी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ा रहा है, लेकिन अभी भी उसके पास एक कुशल दृष्टिकोण का अभाव है.